राह चलते चुभता जो शूल
राह चलते चुभता जो शूल वही उसके स्वभाव अनुकूल! कामिनी की वह कुंचिक अलक कभी था कुटिल भृकुटि, चल पलक! खड़े जो सुंदर सौध विशाल सुनो उनकी ईंटों का हाल, सचिव की उँगली थे वे गोल, शाह के रत्न शीष अनमोल!

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