मंजरित आम्र वन छाया में
मंजरित आम्र-वन-छाया में हम प्रिये, मिले थे प्रथम बार, ऊपर हरीतिमा नभ गुंजित, नीचे चन्द्रातप छना स्फार! तुम मुग्धा थी, अति भाव-प्रवण, उकसे थे, अँबियों-से उरोज, चंचल, प्रगल्भ, हँसमुख, उदार, मैं सलज,--तुम्हें था रहा खोज! छनती थी ज्योत्स्ना शशि-मुख पर, मैं करता था मुख-सुधा पान,-- कूकी थी कोकिल, हिले मुकुल, भर गए गन्ध से मुग्ध प्राण! तुमने अधरों पर धरे अधर, मैंने कोमल वपु-भरा गोद, था आत्म-समर्पण सरल, मधुर, मिल गए सहज मारुतामोद! मंजरित आम्र-द्रुम के नीचे हम प्रिये, मिले थे प्रथम बार, मधु के कर में था प्रणय-बाण, पिक के उर में पावक-पुकार!

Read Next