पल्लव (कविता)
अरे! ये पल्लव-बाल! सजा सुमनों के सौरभ-हार गूँथते वे उपहार; अभी तो हैं ये नवल-प्रवाल, नहीं छूटो तरु-डाल; विश्व पर विस्मित-चितवन डाल, हिलाते अधर-प्रवाल! दिवस का इनमें रजत-प्रसार उषा का स्वर्ण-सुहाग; निशा का तुहिन-अश्रु-श्रृंगार, साँझ का निःस्वन-राग; नवोढ़ा की लज्जा सुकुमार, तरुणतम-सुन्दरता की आग! कल्पना के ये विह्वल-बाल, आँख के अश्रु, हृदय के हास; वेदना के प्रदीप की ज्वाल, प्रणय के ये मधुमास; सुछबि के छायाबन की साँस भर गई इनमें हाव, हुलास! आज पल्लवित हुई है डाल, झुकेगा कल गुंजित-मधुमास; मुग्ध होंगे मधु से मधु-बाल, सुरभि से अस्थिर मरुताकाश!

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