कठपुतले
ये जीवित हैं या जीवन्मृत! या किसी काल विष से मूर्छित? ये मनुजाकृति ग्रामिक अगणित! स्थावर, विषण्ण, जड़वत, स्तंभित! किस महारात्रि तम में निद्रित ये प्रेत?—स्वप्नवत् संचालित! किस मोह मंत्र से रे कीलित ये दैव दग्ध, जग के पीड़ित!! बाम्हन, ठाकुर, लाला, कहार, कुर्मी, अहीर, बारी, कुम्हार, नाई, कोरी, पासी, चमार, शोषित किसान या ज़मीदार,-- ये हैं खाते पीते, रहते, चलते फिरते, रोते हँसते, लड़ते मिलते, सोते जगते, आनंद, नृत्य, उत्सव करते;-- पर जैसे कठपुतले निर्मित, छल प्रतिमाएँ भूषित सज्जित! युग युग की प्रेतात्मा अविदित इनकी गति विधि करती यंत्रित। ये छाया तन, ये माया जन, विश्वास मूढ़ नर नारी गण, चिर रूढ़ि रीतियों के गोपन सूत्रों में बँध करते नर्तन। पा गत संस्कारों के इंगित ये क्रियाचार करते निश्चित, कल्पित स्वर में मुखरित, स्पंदित क्षण भर को ज्यों लगते जीवित! ये मनुज नहीं हैं रे जागृत जिनका उर भावों से दोलित, जिनमें महदाकांक्षाएँ नित होतीं समुद्र सी आलोड़ित। जो बुद्धिप्राण, करते चिन्तन, तत्वान्वेषण, सत्यालोचन, जो जीवन शिल्पी चिर शोभन संचारित करते भव जीवन। ये दारु मूर्तियाँ हैं चित्रित, जो घोर अविद्या में मोहित; ये मानव नहीं, जीव शापित, चेतना विहीन, आत्म विस्मृत!

Read Next