याचना
बना मधुर मेरा जीवन! नव नव सुमनों से चुन चुन कर धूलि, सुरभि, मधुरस, हिम-कण, मेरे उर की मृदु-कलिका में भरदे, करदे विकसित मन। बना मधुर मेरा भाषण! बंशी-से ही कर दे मेरे सरल प्राण औ’ सरस वचन, जैसा जैसा मुझको छेड़ें बोलूँ अधिक मधुर, मोहन; जो अकर्ण-अहि को भी सहसा करदे मन्त्र-मुग्ध, नत-फन, रोम रोम के छिद्रों से मा! फूटे तेरा राग गहन, बना मधुर मेरा तन, मन!

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