लाई हूँ फूलों का हास
लाई हूँ फूलों का हास, लोगी मोल, लोगी मोल? तरल तुहिन-बन का उल्लास लोगी मोल, लोगी मोल?   फैल गई मधु-ऋतु की ज्वाल, जल-जल उठतीं बन की डाल; कोकिल के कुछ कोमल बोल लोगी मोल, लोगी मोल? उमड़ पड़ा पावस परिप्रोत, फूट रहे नव-नव जल-स्रोत; जीवन की ये लहरें लोल, लोगी मोल, लोगी मोल? विरल जलद-पट खोल अजान छाई शरद-रजत-मुस्कान; यह छवि की ज्योत्स्ना अनमोल लोगी मोल, लोगी मोल? अधिक अरुण है आज सकाल -- चहक रहे जग-जग खग-बाल; चाहो तो सुन लो जी खोल कुछ भी आज न लूँगी मोल!

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