वसन्त-श्री
उस फैली हरियाली में, कौन अकेली खेल रही मा! वह अपनी वय-बाली में? सजा हृदय की थाली में-- क्रीड़ा, कौतूहल, कोमलता, मोद, मधुरिमा, हास, विलास, लीला, विस्मय, अस्फुटता, भय, स्नेह, पुलक, सुख, सरल-हुलास! ऊषा की मृदु-लाली में-- किसका पूजन करती पल पल बाल-चपलता से अपनी? मृदु-कोमलता से वह अपनी, सहज-सरलता से अपनी? मधुऋतु की तरु-डाली में-- रूप, रंग, रज, सुरभि, मधुर-मधु, भर कर मुकुलित अंगों में मा! क्या तुम्हें रिझाती है वह? खिल खिल बाल-उमंगों में, हिल मिल हृदय-तरंगों में!

Read Next