नील-कमल सी हैं वे आँख
नील-कमल-सी हैं वे आँख! डूबे जिनके मधु में पाँख— मधु में मन-मधुकर के पाँख! नील-जलज-सी हैं वे आँख! मुग्ध स्वर्ण-किरणों ने प्रात प्रथम खिलाए वे जलजात; नील व्योम ने ढल अज्ञात उन्हें नीलिमा दी नवजात; जीवन की सरसी उस प्रात लहरा उठी चूम मधु-वात, आकुल-लहरों ने तत्काल उनमें चंचलता दी ढाल; नील नलिन-सी हैं वे आँख! जिनमें बस उर का मधुबाल कृष्ण-कनी बन गया विशाल, नील सरोरुह-सी वे आँख!

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