आँखों की खिड़की से उड़ उड़
आँखों की खिड़की से उड़-उड़ आते ये आते मधुर-विहग, उर-उर से सुखमय भावों के आते खग मेरे पास सुभग। मिलता जब कुसुमित जन-समूह नयनों का नव-मुकुलित मधुवन पलकों की मृदु-पंखड़ियों पर मँडराते मिलते ये खगगण। निज कोमल-पंखों से छूकर ये पुलकित कर देते तन-मन, अस्फुट-स्वर में मन की बातें कहते रे मन से ये क्षण-क्षण। उर-उर में मृदु-मृदु भावों के विहगों के रहते नीड़ सुभग, इस उर से उस उर में उड़ते ये मन के सुन्दर स्वर्ण-विहग।

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