खिलतीं मधु की नव कलियाँ
खिलतीं मधु की नव कलियाँ खिल रे, खिल रे मेरे मन! नव सुखमा की पंखड़ियाँ फैला, फैला परिमल-घन! नव छवि, नव रंग, नव मधु से मुकुलित, पुलकित हो जीवन! सालस सुख की सौरभ से साँसों का मलय-समीरण। रे गूँज उठा मधुवन में नव गुंजन, अभिनव गुंजन, जीवन के मधु-संचय को उठता प्राणों में स्पन्दन! खुल खुल नव-नव इच्छाएँ फैलातीं जीवन के दल, गा-गा प्राणों का मधुकर पीता मधुरस परिपूरण!

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