कब से विलोकती तुमको
कब से विलोकती तुमको ऊषा आ वातायन से? सन्ध्या उदास फिर जाती सूने-गृह के आँगन से! लहरें अधीर सरसी में तुमको तकतीं उठ-उठ कर, सौरभ-समीर रह जाता प्रेयसि! ठण्ढी साँसे भर! हैं मुकुल मुँदे डालों पर, कोकिल नीरव मधुबन में; कितने प्राणों के गाने ठहरे हैं तुमको मन में? तुम आओगी, आशा में अपलक हैं निशि के उडुगण! आओगी, अभिलाषा से चंचल, चिर-नव, जीवन-क्षण!

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