कुसुमों के जीवन का पल
कुसुमों के जीवन का पल हँसता ही जग में देखा, इन म्लान, मलिन अधरों पर स्थिर रही न स्मिति की रेखा! बन की सूनी डाली पर सीखा कलि ने मुसकाना, मैं सीख न पाया अब तक सुख से दुख को अपनाना। काँटों से कुटिल भरी हो यह जटिल जगत की डाली, इसमें ही तो जीवन के पल्लव की फूटी लाली। अपनी डाली के काँटे बेधते नहीं अपना तन, सोने-सा उज्ज्वल बनने तपता नित प्राणों का धन। दुख-दावा से नव-अंकुर पाता जग-जीवन का बन, करुणार्द्र विश्व की गर्जन, बरसाती नव-जीवन-कण!

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