बाँधो, छबि के नव बन्धन
बाँधो, छबि के नव बन्धन बाँधो! नव नव आशाकांक्षाओं में तन-मन-जीवन बाँधो! छबि के नव-- भाव रूप में, गीत स्वरों में, गंध कुसुम में, स्मित अधरों में, जीवन की तमिस्र-वेणी में निज प्रकाश-कण बाँधो! छबि के नव-- सुख से दुख औ’ प्रलय से सृजन चिर आत्मा से अस्थिर रज-तन, महामरण को जग-जीवन का दे आलिंगन बाँधो! छबि के नव-- बाँधो जलनिधि लघु जल-कण में, महाकाल को कवलित क्षण में, फिर-फिर अपनेपन को मुझमें चिर जीवन-धन! बाँधो! छबि के नव--

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