शांत सरोवर का उर
शांत सरोवर का उर किस इच्छा से लहरा कर हो उठता चंचल, चंचल? सोये वीणा के सुर क्यों मधुर स्पर्श से मर् मर् बज उठते प्रतिपल, प्रतिपल! आशा के लघु अंकुर किस सुख से फड़का कर पर फैलाते नव दल पर दल! मानव का मन निष्ठुर सहसा आँसू में झर-झर क्यों जाता पिघल-पिघल गल! मैं चिर उत्कंठातुर जगती के अखिल चराचर यों मौन-मुग्ध किसके बल!

Read Next