खो गई स्वर्ग की स्वर्ण-किरण
छू जग-जीवन का अन्धकार,
मानस के सूने-से तम को
दिशि-पल के स्वप्नों में सँवार!
गुँथ गए अजान तिमिर-प्रकाश
दे-दे जग-जीवन को विकास,
बहु रूप-रंग-रेखाओं में
भर विरह-मिलन का अश्रु-हास!
धुन जग का दुर्गम अन्धकार,
चुन नाम-रूप का अमृत सार,
मैं खोज रहा खोया प्रकाश
सुलझा जीवन के तार-तार!
खो गई स्वर्ग की अमर-किरण
कुसुमित कर जग का अन्धकार,
जाने कब भूल पड़ा निज को
मैं उसको फिर इसको निहार!