वन-वन, उपवन
वन-वन, उपवन-- छाया उन्मन-उन्मन गुंजन, नव-वय के अलियों का गुंजन! रुपहले, सुनहले आम्र-बौर, नीले, पीले औ ताम्र भौंर, रे गंध-अंध हो ठौर-ठौर उड़ पाँति-पाँति में चिर-उन्मन करते मधु के वन में गुंजन! वन के विटपों की डाल-डाल कोमल कलियों से लाल-लाल, फैली नव-मधु की रूप-ज्वाल, जल-जल प्राणों के अलि उन्मन करते स्पन्दन, करते-गुंजन! अब फैला फूलों में विकास, मुकुलों के उर में मदिर वास, अस्थिर सौरभ से मलय-श्वास, जीवन-मधु-संचय को उन्मन करते प्राणों के अलि गुंजन!

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