नव हे, नव हे
नव हे, नव हे! नव नव सुषमा से मंडित हो चिर पुराण भव हे! नव हे!-- नव ऊषा-संध्या अभिनन्दित नव-नव ऋतुमयि भू, शशि-शोभित, विस्मित हो, देखूँ मैं अतुलित जीवन-वैभव हे! नव हे!-- नव शैशव-यौवन हिल्लोलित जन्म-मरण से हो जग दोलित, नव इच्छाओं का हो उर में आकुल पिक-रव हे! नव हे!-- बाँध रहें मुक्ति को बन्धन, हो सीमा असीम अवलम्बन, द्वार खड़े हों नित नव सुख-दुख विजय-पराभव हे! नव हे! अपनी इच्छा से निर्मित जग कल्पित सुख-दुख के अस्थिर पग, मेरे जीवन से हो जीवित यह जग का शव हे! नव हे!

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