बढ़ो अभय, विश्वास-चरण धर
बढ़ो अभय, विश्वास-चरण धर! सोचो वृथा न भव-भय-कातर! ज्वाला के विश्वास के चरण, जीवन मरण समुद्र संतरण, सुख-दुख की लहरों के शिर पर पग धर, पार करो भव-सागर। बढ़ो, बढ़ो विश्वास-चरण धर! क्या जीवन? क्यों? क्या जग-कारण? पाप-पूण्य, सुख-दुख का वारण? व्यर्थ तर्क! यह भव लोकोत्तर बढ़ती लहर, बुद्धि से दुस्तर! पार करो विश्वास-चरण धर! जीवन-पथ तमिस्रमय निर्जन, हरती भव-तम एक लघु किरण, यदि विश्वास हृदय में अणुभर देंगे पथ तुमको गिरि-सागर। बढ़ो अमर, विश्वास-चरण धर!

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