शत बाहु-पद
शत बाहु-पद, शत नाम-रूप, शत मन, इच्छा, वाणी, विचार, शत राग-द्वेष, शत क्षुधा-काम,-- यह जग-जीवन का अन्धकार! शत मिथ्या वाद-विवाद, तर्क, शत रूढ़ि-नीति, शत धर्म-द्वार, शिक्षा, संस्कृति, संस्था, समाज,-- यह पशु-मानव का अहंकार! -यह दिशि-पल का तम, इन्द्रजाल, बहु भेद-जन्य, भव क्लेश-भार, प्रभु! बाँध एकता में अपनी भर दें इसमें अमरत्व-सार!

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