जो दीन-हीन, पीड़ित
जो दीन-हीन, पीड़ित, निर्बल, मैं हूँ उनका जीवन संबल! जो मोह-छिन्न, जग से विभक्त, वे मुझ में मिलें, बनें सशक्त! जो अहंपूर्ण, वे अन्ध-कूप, जो नम्र, उठे बन कीर्ति-स्तूप! जो छिन्न-भिन्न, जल-कण असार, जो मिले, बने सागर अपार, जग नाम-रूपमय अन्धकार, मैं चिर-प्रकाश, मैं मुक्ति-द्वार!

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