झर पड़ता जीवन डाली से
झर पड़ता जीवन-डाली से मैं पतझड़ का-सा जीर्ण-पात!-- केवल, केवल जग-कानन में लाने फिर से मधु का प्रभात! मधु का प्रभात!--लद लद जातीं वैभव से जग की डाल-डाल, कलि-कलि किसलय में जल उठती सुन्दरता की स्वर्णीय-ज्वाल! नव मधु-प्रभात!--गूँजते मधुर उर-उर में नव आशाभिलास, सुख-सौरभ, जीवन-कलरव से भर जाता सूना महाकाश! आः मधु-प्रभात!--जग के तम में भरती चेतना अमर प्रकाश, मुरझाए मानस-मुकुलों में पाती नव मानवता विकास! मधु-प्रात! मुक्त नभ में सस्मित नाचती धरित्री मुक्त-पाश! रवि-शशि केवल साक्षी होते अविराम प्रेम करता प्रकाश! मैं झरता जीवन डाली से साह्लाद, शिशिर का शीर्ण पात! फिर से जगती के कानन में आ जाता नवमधु का प्रभात!

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