वे डूब गए
वे डूब गए--सब डूब गए दुर्दम, उदग्रशिर अद्रि-शिखर! स्वप्नस्थ हुए स्वर्णातप में लो, स्वर्ण-स्वर्ण अब सब भूधर! पल में कोमल पड़, पिघल उठे सुन्दर बन, जड़, निर्मम प्रस्तर, सब मन्त्र-मुग्ध हो, जड़ित हुए, लहरों-से चित्रित लहरों पर! मानव जग में गिरि-कारा-सी गत-युग की संस्कृतियाँ दुर्धर बंदी की हैं मानवता को रच देश-जाति की भित्ति अमर। ये डूबेंगी-सब डूबेंगी पा नव मानवता का विकास, हँस देगा स्वर्णिम वज्र-लौह छू मानव-आत्मा का प्रकाश!

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