निर्झर
तुम झरो हे निर्झर प्राणों के स्वर झरो हे निर्झर! चिर अगोचर नील शिखर मौन शिखर तुम प्रशस्त मुक्त मुखर,-- झरो धरा पर भरो धरा पर नव प्रभात, स्वर्ग स्नात, सद्य सुघर! झरो हे निर्झर प्राणों के स्वर झरो हे निर्झर! ज्योति स्तंभ सदृश उतर जव में नव जीवन भर उर में सौन्दर्य अमर स्वर्ण ज्वार से निर्भर झरो धरा पर भरो धरा पर तप पूत नवोद्भूत चेतना वर! झरो हे निर्झर!

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