अंतर्विकास
विभा, विभा जगत ज्योति तमस द्विभा! झरता तम का बादल इंद्रधनुष रँग में ढल ओझल हँस इंद्रधनुष केवल फिर चिर उज्वल विभा! मनस रूप भाव द्विभा! इंद्रियाँ स्वरूप जड़ित, रूप भाव बुद्धि जनित भाव दुख सुख कल्पित, ज्ञान भक्ति में विकसित, विभा! जीवन भव सृजन द्विभा! सृजन शील जग विकास, जड़ जीवन मनोभास, आत्माहम्, परे मुक्ति, स्वर्ण चेतना प्रकाश, विभा! जन्म मरण मात्र द्विभा!

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