प्रतीति
विहगों का मधुर स्वर हृदय क्यों लेता हर? क्यों चपल जल लहर तन में भरती सिहर? तुमसे! नीला सूना सा नभ देता आनंद अलभ ऊषा संध्या द्वाभा स्वर्ण प्रभ, तुमसे! यह विरोध वारिधि जग शूल फूल सँग प्रतिपग लगता प्रिय मधुर सुभग, तुमसे! लुटे घर द्वार मान, छुटे तन मन प्राण, कहता है बार बार मानव हृदय पुकार रह सकूँगा निराधार तुमसे? आशाएँ हो न पूर्ण अभिलाषा अखिल चूर्ण जीवन बन जाय भार सूख जाय स्नेह धार विजय बनेगी हार तुमसे!

Read Next