प्रेम मुक्ति
एक धार बहता जग जीवन एक धार बहता मेरा मन! आर पार कुछ नहीं कहीं रे इस धारा का आदि न उद्गम! सत्य नहीं यह स्वप्न नहीं रे सुप्ति नहीं यह मुक्ति न बंधन आते जाते विरह मिलन नित गाते रोते जन्म मृत्यु क्षण! व्याकुलता प्राणों में बसती हँसी अधर पर करती नर्तन पीड़ा से पुलकित होता मन सुख से ढ़लते आँसू के कण! शत वसंत शत पतझर खिलते झरते, नहीं कहीं परिवर्तन, बँधे चिरंतन आलिंगन में सुख दुख, देह-जरा उर यौवन! एक धार जाता जग जीवन एक धार जाता मेरा मन, अतल अकूल जलधि प्राणों का लहराता उर में भर कंपन!

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