नव वधू के प्रति
दुग्ध पीत अधखिली कली सी मधुर सुरभि का अंतस्तल दीप शिखा सी स्वर्ण करों के इन्द्र चाप का मुख मंडल! शरद व्योम सी शशि मुख का शोभित लेखा लावण्य नवल, शिखर स्रोत सी, स्वच्छ सरल जो जीवन में बहता कल कल! ऐसी हो तुम, सहज बोध की मधुर सृष्टि, संतुलित, गहन, स्नेह चेतना सूत्र में गुँथी सौम्य, सुघर, जैसे हिमकण! घुटनों के बल नहीं चली तुम, धर प्रतीति के धीर चरण, बड़ी हुई जग के आँगन में, थामे रहा बाँह जीवन! आती हो तुम सौ सौ स्वागत, दीपक बन घर की आओ, श्री शोभा सुख स्नेह शांति की मंगल किरणें बरसाओ! प्रभु का आशीर्वाद तुम्हें, सेंदुर सुहाग शाश्वत पाओ संगच्छध्वं के पुनीत स्वर जीवन में प्रति पग गाओ!

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