मनुष्यत्व
छोड़ नहीं सकते रे यदि जन जाति वर्ग औ’ धर्म के लिए रक्त बहाना बर्बरता को संस्कृति का बाना पहनाना— तो अच्छा हो छोड़ दें अगर हम हिन्दू मुस्लिम औ’ ईसाई कहलाना! मानव होकर रहें धरा पर जाति वर्ण धर्मों से ऊपर व्यापक मनुष्यत्व में बँधकर! नहीं छोड़ सकते रे यदि जन देश राष्ट्र राज्यों के हित नित युद्ध कराना हरित जनाकुल धरती पर विनाश बरसाना— तो अच्छा हो छोड़ दें अगर हम अमरीकन रूसी औ’ इंग्लिश कहलाना! देशों से आए धरा निखर, पृथ्वीहो सब मनुजों की घर हम उसकी संतान बराबर! छोड़ नहीं सकते हैं यदि जन नारी मोह, पुरुष की दासी उसे बनाना, देह द्वेष औ’ काम क्लेश के दृश्य दिखाना— तो अच्छा हो छोड़ दें अगर हम समाज में द्वन्द्व स्त्री पुरुष में बँट जाना! स्नेह मुक्त सब रहें परस्पर नारी हो स्वतंत्र जैसे नर देव द्वार हो मातृ कलेवर!

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