लोक सत्य
बोला माधव, ‘प्यारे यादव जब तक होंगे लोग नहीं अपने सत्वों से परिचित जन संग्रह बल पर भव संकृति हो न सकेगी निर्मित! आज अल्प हैं जीवित जग में औ’ असत्य उत्पीड़ित लौह मुष्टि से हमें छीननी होगी सत्ता निश्चित!’ बोला यादव ‘प्यारे माधव मुझको लगता आज वृत्त में घूम रहा मानव मन, भौतिकता के आकर्षण से रण जर्जर जग जीवन! समतल व्यापी दृष्टि मनुज की देख न पाती ऊपर, देख न पाती भीतर अपने, युग स्थितियों से बाहर! नहीं दीखता मुझे जनों का भूत भ्रांति में मंगल वाह्य क्रांति से प्रबल हृदय में क्रांति चल रही प्रतिपल! मध्य वर्ग की वैभव तंद्रा के स्वप्नों से जग कर अभिनव लोक सत्य को हमको स्थापित करना भू पर! युग युग के जीवन से औ’ युग जीवन से उत्सर्जित सूक्ष्म चेतना में मनुष्य की, सत्य हो रहा विकसित! आज मनुज को ऊपर उठ औ’ भीतर से हो विस्तृत नव्य चेतना से जग जीवन को करना है दीपित!’ बोला यादव ‘प्यारे माधव, वही सत्य कर सकता मानव जीवन का परिचालन भूतवाद हो जिसका रज तन प्राणिवाद जिसका मन औ’ अध्यात्मवाद हो जिसका हृदय गभीर चिरंतन जिसमें मूल सृजन विकास के विश्व प्रगति के गोपन! आज हमें मानव मन को करना आत्मा के अभिमुख, मनुष्यत्व में मज्जित करने युग जीवन के सुख दुख! पिघला देगी लौह मुष्टि को आत्मा की कोमलता जन बल से रे कहीं बड़ी है मनुष्यत्व की क्षमता!

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