जहाँ में हाल मिरा इस क़दर ज़बून हुआ
कि मुझ को देख के बिस्मिल को भी सुकून हुआ
ग़रीब दिल ने बहुत आरज़ूएँ पैदा कीं
मगर नसीब का लिक्खा कि सब का ख़ून हुआ...
हर क़दम कहता है तू आया है जाने के लिए
मंज़िल-ए-हस्ती नहीं है दिल लगाने के लिए
क्या मुझे ख़ुश आए ये हैरत-सरा-ए-बे-सबात
होश उड़ने के लिए है जान जाने के लिए...
फ़लसफ़ी को बहस के अंदर ख़ुदा मिलता नहीं
डोर को सुलझा रहा है और सिरा मिलता नहीं
मअरिफ़त ख़ालिक़ की आलम में बहुत दुश्वार है
शहर-ए-तन में जब कि ख़ुद अपना पता मिलता नहीं...
मअ'नी को भुला देती है सूरत है तो ये है
नेचर भी सबक़ सीख ले ज़ीनत है तो ये है
कमरे में जो हँसती हुई आई मिस-ए-राना
टीचर ने कहा इल्म की आफ़त है तो ये है...
इश्क़-ए-बुत में कुफ़्र का मुझ को अदब करना पड़ा
जो बरहमन ने कहा आख़िर वो सब करना पड़ा
सब्र करना फ़ुर्क़त-ए-महबूब में समझे थे सहल
खुल गया अपनी समझ का हाल जब करना पड़ा...