Akbar Allahabadi
( 1846 - 1921 )

Akbar Hussain Rizvi, popularly known as Akbar Allahabadi (Hindi: अक़बर इलाहाबादी), was an Indian Urdu poet. More

सीने से लगाएँ तुम्हें अरमान यही है जीने का मज़ा है तो मिरी जान यही है ...

तुम नाक चढ़ाते हो मिरी बात पे ऐ शैख़ खींचूँगी किसी रोज़ मैं अब कान तुम्हारे...

मज़हबी बहस मैं ने की ही नहीं फ़ालतू अक़्ल मुझ में थी ही नहीं...

जहाँ में हाल मिरा इस क़दर ज़बून हुआ कि मुझ को देख के बिस्मिल को भी सुकून हुआ ग़रीब दिल ने बहुत आरज़ूएँ पैदा कीं मगर नसीब का लिक्खा कि सब का ख़ून हुआ...

हर क़दम कहता है तू आया है जाने के लिए मंज़िल-ए-हस्ती नहीं है दिल लगाने के लिए क्या मुझे ख़ुश आए ये हैरत-सरा-ए-बे-सबात होश उड़ने के लिए है जान जाने के लिए...

फ़लसफ़ी को बहस के अंदर ख़ुदा मिलता नहीं डोर को सुलझा रहा है और सिरा मिलता नहीं मअरिफ़त ख़ालिक़ की आलम में बहुत दुश्वार है शहर-ए-तन में जब कि ख़ुद अपना पता मिलता नहीं...

मअ'नी को भुला देती है सूरत है तो ये है नेचर भी सबक़ सीख ले ज़ीनत है तो ये है कमरे में जो हँसती हुई आई मिस-ए-राना टीचर ने कहा इल्म की आफ़त है तो ये है...

क्या जानिए सय्यद थे हक़ आगाह कहाँ तक समझे न कि सीधी है मिरी राह कहाँ तक मंतिक़ भी तो इक चीज़ है ऐ क़िबला ओ काबा दे सकती है काम आप की वल्लाह कहाँ तक...

इश्क़-ए-बुत में कुफ़्र का मुझ को अदब करना पड़ा जो बरहमन ने कहा आख़िर वो सब करना पड़ा सब्र करना फ़ुर्क़त-ए-महबूब में समझे थे सहल खुल गया अपनी समझ का हाल जब करना पड़ा...

ज़रूरी चीज़ है इक तजरबा भी ज़िंदगानी में तुझे ये डिग्रियाँ बूढ़ों का हम-सिन कर नहीं सकतीं...