Dagh Dehlvi
( 1831 - 1905 )

Daagh Dehlvi (Hindi: दाग़ देहलवी) born Nawab Mirza Khan (Hindi: नवाब मिर्ज़ा ख़ान) was an outstanding poet famous for his Urdu ghazals and belonged to the old Delhi school of Urdu poetry. He wrote romantic and sensuous poems and ghazals in simple and chaste Urdu, minimising usage of Persian words. He laid great emphasis on the Urdu idiom and its usage. He wrote under the takhallus (Urdu word for nom de plume) Daagh Dehlvi (the meanings of Daagh, an Urdu noun, include stain, grief and taint while Dehlvi means belonging to or from Dehli or Delhi). More

लाख देने का एक देना था दिल-ए-बे-मुद्दआ दिया तू ने...

डरते हैं चश्म ओ ज़ुल्फ़ ओ निगाह ओ अदा से हम हर दम पनाह माँगते हैं हर बला से हम माशूक़ जा-ए-हूर मिले मय बजाए आब महशर में दो सवाल करेंगे ख़ुदा से हम...

जाओ भी क्या करोगे मेहर-ओ-वफ़ा बार-हा आज़मा के देख लिया...

और होंगे तिरी महफ़िल से उभरने वाले हज़रत-ए-'दाग़' जहाँ बैठ गए बैठ गए...

अभी हमारी मोहब्बत किसी को क्या मालूम किसी के दिल की हक़ीक़त किसी को क्या मालूम यक़ीं तो ये है वो ख़त का जवाब लिक्खेंगे मगर नविश्ता-ए-क़िस्मत किसी को क्या मालूम...

इन आँखों ने क्या क्या तमाशा न देखा हक़ीक़त में जो देखना था न देखा तुझे देख कर वो दुई उठ गई है कि अपना भी सानी न देखा न देखा...

फिरे राह से वो यहाँ आते आते अजल मर रही तू कहाँ आते आते...

चाक हो पर्दा-ए-वहशत मुझे मंज़ूर नहीं वर्ना ये हाथ गिरेबान से कुछ दूर नहीं...

जो गुज़रते हैं 'दाग़' पर सदमे आप बंदा-नवाज़ क्या जानें...

रह गए लाखों कलेजा थाम कर आँख जिस जानिब तुम्हारी उठ गई...