Sumitranandan Pant
( 1900 - 1977 )

Sumitranandan Pant (Hindi: सुमित्रानंदन पंत) was an Indian poet. He was one of the most celebrated "Progressive" left-wing 20th century poets of the Hindi language and was known for romanticism in his poems which were inspired by nature, people and beauty within. More

मुसकुरा दी थी क्या तुम, प्राण! मुसकुरा दी थी आज विहान? आज गृह-वन-उपवन के पास लोटता राशि-राशि हिम-हास,...

झर पड़ता जीवन-डाली से मैं पतझड़ का-सा जीर्ण-पात!-- केवल, केवल जग-कानन में लाने फिर से मधु का प्रभात!...

उस फैली हरियाली में, कौन अकेली खेल रही मा! वह अपनी वय-बाली में? सजा हृदय की थाली में--...

जाने किस छल-पीड़ा से व्याकुल-व्याकुल प्रतिपल मन, ज्यों बरस-बरस पड़ने को हों उमड़-उमड़ उठते घन! ...

जाती ग्राम वधू पति के घर! मा से मिल, गोदी पर सिर धर, गा गा बिटिया रोती जी भर, जन जन का मन करुणा कातर,...

झर पड़ता जीवन-डाली से मैं पतझड़ का-सा जीर्ण-पात!-- केवल, केवल जग-कानन में लाने फिर से मधु का प्रभात!...

आँसू की आँखों से मिल भर ही आते हैं लोचन, हँसमुख ही से जीवन का पर हो सकता अभिवादन। ...

तेरा कैसा गान, विहंगम! तेरा कैसा गान? न गुरु से सीखे वेद-पुराण, न षड्दर्शन, न नीति-विज्ञान;...

कुसुमों के जीवन का पल हँसता ही जग में देखा, इन म्लान, मलिन अधरों पर स्थिर रही न स्मिति की रेखा! ...

तेरा कैसा गान, विहंगम! तेरा कैसा गान? न गुरु से सीखे वेद-पुराण, न षड्दर्शन, न नीति-विज्ञान;...