Page 5 of 6

वो चाँदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है बहुत अज़ीज़ हमें है मगर पराया है उतर भी आओ कभी आसमाँ के ज़ीने से तुम्हें ख़ुदा ने हमारे लिए बनाया है...

मेरे सीने पर वो सर रक्खे हुए सोता रहा जाने क्या थी बात मैं जागा किया रोता रहा शबनमी में धूप की जैसे वतन का ख़्वाब था लोग ये समझे मैं सब्ज़े पर पड़ा सोता रहा...

किसी ने चूम के आँखों को ये दुआ दी थी ज़मीन तेरी ख़ुदा मोतियों से नम कर दे...

सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा इतना मत चाहो उसे वो बेवफ़ा हो जाएगा हम भी दरिया हैं हमें अपना हुनर मालूम है जिस तरफ़ भी चल पड़ेंगे रास्ता हो जाएगा...

तहज़ीब के लिबास उतर जाएँगे जनाब डॉलर में यूँ नचाएगी इक्कीसवीं सदी...

कहीं चाँद राहों में खो गया कहीं चाँदनी भी भटक गई मैं चराग़ वो भी बुझा हुआ मेरी रात कैसे चमक गई मिरी दास्ताँ का उरूज था तिरी नर्म पलकों की छाँव में मिरे साथ था तुझे जागना तिरी आँख कैसे झपक गई...

वही ताज है वही तख़्त है वही ज़हर है वही जाम है ये वही ख़ुदा की ज़मीन है ये वही बुतों का निज़ाम है बड़े शौक़ से मिरा घर जला कोई आँच तुझ पे न आएगी ये ज़बान किसी ने ख़रीद ली ये क़लम किसी का ग़ुलाम है...

मिरे साथ चलने वाले तुझे क्या मिला सफ़र में वही दुख-भरी ज़मीं है वही ग़म का आसमाँ है...

उदास आँखों से आँसू नहीं निकलते हैं ये मोतियों की तरह सीपियों में पलते हैं...

वो चाँदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है बहुत अज़ीज़ हमें है मगर पराया है...

तिरी आरज़ू तिरी जुस्तुजू में भटक रहा था गली गली मिरी दास्ताँ तिरी ज़ुल्फ़ है जो बिखर बिखर के सँवर गई...

फूल बरसे कहीं शबनम कहीं गौहर बरसे और इस दिल की तरफ़ बरसे तो पत्थर बरसे कोई बादल हो तो थम जाए मगर अश्क मिरे एक रफ़्तार से दिन रात बराबर बरसे...

वो इंतिज़ार की चौखट पे सो गया होगा किसी से वक़्त तो पूछें कि क्या बजा होगा...

जी बहुत चाहता है सच बोलें क्या करें हौसला नहीं होता...

इसी शहर में कई साल से मिरे कुछ क़रीबी अज़ीज़ हैं उन्हें मेरी कोई ख़बर नहीं मुझे उन का कोई पता नहीं...

इक परी के साथ मौजों पर टहलता रात को अब भी ये क़ुदरत कहाँ है आदमी की ज़ात को जिन का सारा जिस्म होता है हमारी ही तरह फूल कुछ ऐसे भी खिलते हैं हमेशा रात को...

कभी कभी तो छलक पड़ती हैं यूँही आँखें उदास होने का कोई सबब नहीं होता...

तुम्हें ज़रूर कोई चाहतों से देखेगा मगर वो आँखें हमारी कहाँ से लाएगा...

ख़ुदा हम को ऐसी ख़ुदाई न दे कि अपने सिवा कुछ दिखाई न दे ख़ता-वार समझेगी दुनिया तुझे अब इतनी ज़ियादा सफ़ाई न दे...

मेरे दिल की राख कुरेद मत इसे मुस्कुरा के हवा न दे ये चराग़ फिर भी चराग़ है कहीं तेरा हाथ जला न दे नए दौर के नए ख़्वाब हैं नए मौसमों के गुलाब हैं ये मोहब्बतों के चराग़ हैं इन्हें नफ़रतों की हवा न दे...

वो चाँदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है बहुत अज़ीज़ हमें है मगर पराया है...

मुझे लगता है दिल खिंच कर चला आता है हाथों पर तुझे लिक्खूँ तो मेरी उँगलियाँ ऐसी धड़कती हैं...

कहाँ आँसुओं की ये सौग़ात होगी नए लोग होंगे नई बात होगी मैं हर हाल में मुस्कुराता रहूँगा तुम्हारी मोहब्बत अगर साथ होगी...

रेत भरी है इन आँखों में आँसू से तुम धो लेना कोई सूखा पेड़ मिले तो उस से लिपट के रो लेना उस के बा'द बहुत तन्हा हो जैसे जंगल का रस्ता जो भी तुम से प्यार से बोले साथ उसी के हो लेना...

उतर भी आओ कभी आसमाँ के ज़ीने से तुम्हें ख़ुदा ने हमारे लिए बनाया है...

मैं चाहता हूँ कि तुम ही मुझे इजाज़त दो तुम्हारी तरह से कोई गले लगाए मुझे...

कभी यूँ भी आ मिरी आँख में कि मिरी नज़र को ख़बर न हो मुझे एक रात नवाज़ दे मगर इस के बाद सहर न हो...

अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जाएगा मगर तुम्हारी तरह कौन मुझ को चाहेगा...

दुश्मनी का सफ़र इक क़दम दो क़दम तुम भी थक जाओगे हम भी थक जाएँगे...

कई साल से कुछ ख़बर ही नहीं कहाँ दिन गुज़ारा कहाँ रात की...

सात संदूक़ों में भर कर दफ़्न कर दो नफ़रतें आज इंसाँ को मोहब्बत की ज़रूरत है बहुत...

ग़ज़लों का हुनर अपनी आँखों को सिखाएँगे रोएँगे बहुत लेकिन आँसू नहीं आएँगे कह देना समुंदर से हम ओस के मोती हैं दरिया की तरह तुझ से मिलने नहीं आएँगे...

नाम पानी पे लिखने से क्या फ़ाएदा लिखते लिखते तिरे हाथ थक जाएँगे...

बहुत दिनों से मिरे साथ थी मगर कल शाम मुझे पता चला वो कितनी ख़ूबसूरत है...

मैं ने दिन रात ख़ुदा से ये दुआ माँगी थी कोई आहट न हो दर पर मिरे जब तू आए...

है अजीब शहर की ज़िंदगी न सफ़र रहा न क़याम है कहीं कारोबार सी दोपहर कहीं बद-मिज़ाज सी शाम है...

हमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाए चराग़ों की तरह आँखें जलें जब शाम हो जाए कभी तो आसमाँ से चाँद उतरे जाम हो जाए तुम्हारे नाम की इक ख़ूब-सूरत शाम हो जाए...

फूल बरसे कहीं शबनम कहीं गौहर बरसे और इस दिल की तरफ़ बरसे तो पत्थर बरसे...

तुम्हारे घर के सभी रास्तों को काट गई हमारे हाथ में कोई लकीर ऐसी थी...

यहाँ लिबास की क़ीमत है आदमी की नहीं मुझे गिलास बड़े दे शराब कम कर दे...