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वो इत्र-दान सा लहजा मिरे बुज़ुर्गों का रची-बसी हुई उर्दू ज़बान की ख़ुश्बू...

यहाँ एक बच्चे के ख़ून से जो लिखा हुआ है उसे पढ़ें तिरा कीर्तन अभी पाप है अभी मेरा सज्दा हराम है...

मुझ से क्या बात लिखानी है कि अब मेरे लिए कभी सोने कभी चाँदी के क़लम आते हैं...

मुख़ालिफ़त से मिरी शख़्सियत सँवरती है मैं दुश्मनों का बड़ा एहतिराम करता हूँ...

मुझे इश्तिहार सी लगती हैं ये मोहब्बतों की कहानियाँ जो कहा नहीं वो सुना करो जो सुना नहीं वो कहा करो...

मुद्दत से इक लड़की के रुख़्सार की धूप नहीं आई इस लिए मेरे कमरे में इतनी ठंडक रहती है...

कभी तो आसमाँ से चाँद उतरे जाम हो जाए तुम्हारे नाम की इक ख़ूब-सूरत शाम हो जाए...

ख़ुदा की इतनी बड़ी काएनात में मैं ने बस एक शख़्स को माँगा मुझे वही न मिला...

अजब चराग़ हूँ दिन रात जलता रहता हूँ मैं थक गया हूँ हवा से कहो बुझाए मुझे...

हसीं तो और हैं लेकिन कोई कहाँ तुझ सा जो दिल जलाए बहुत फिर भी दिलरुबा ही लगे...

ये ज़ाफ़रानी पुलओवर उसी का हिस्सा है कोई जो दूसरा पहने तो दूसरा ही लगे...

ये फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं तुम ने मिरा काँटों भरा बिस्तर नहीं देखा...

मैं जिस की आँख का आँसू था उस ने क़द्र न की बिखर गया हूँ तो अब रेत से उठाए मुझे...

आहन में ढलती जाएगी इक्कीसवीं सदी फिर भी ग़ज़ल सुनाएगी इक्कीसवीं सदी बग़दाद दिल्ली मास्को लंदन के दरमियाँ बारूद भी बिछाएगी इक्कीसवीं सदी...

कई सितारों को मैं जानता हूँ बचपन से कहीं भी जाऊँ मिरे साथ साथ चलते हैं...

अजीब शख़्स है नाराज़ हो के हँसता है मैं चाहता हूँ ख़फ़ा हो तो वो ख़फ़ा ही लगे...

रोने वालों ने उठा रक्खा था घर सर पर मगर उम्र भर का जागने वाला पड़ा सोता रहा...

पहचान अपनी हम ने मिटाई है इस तरह बच्चों में कोई बात हमारी न आएगी...

अच्छा तुम्हारे शहर का दस्तूर हो गया जिस को गले लगा लिया वो दूर हो गया काग़ज़ में दब के मर गए कीड़े किताब के दीवाना बे-पढ़े-लिखे मशहूर हो गया...

अगर फ़ुर्सत मिले पानी की तहरीरों को पढ़ लेना हर इक दरिया हज़ारों साल का अफ़्साना लिखता है...

नहीं है मेरे मुक़द्दर में रौशनी न सही ये खिड़की खोलो ज़रा सुब्ह की हवा ही लगे...

हम भी दरिया हैं हमें अपना हुनर मालूम है जिस तरफ़ भी चल पड़ेंगे रास्ता हो जाएगा...

ख़ुदा ऐसे एहसास का नाम है रहे सामने और दिखाई न दे...

ज़िंदगी तू ने मुझे क़ब्र से कम दी है ज़मीं पाँव फैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है...

कोई फूल सा हाथ काँधे पे था मिरे पाँव शोलों पे जलते रहे...

दिल उजड़ी हुई एक सराए की तरह है अब लोग यहाँ रात जगाने नहीं आते...

दिन में परियों की कोई कहानी न सुन जंगलों में मुसाफ़िर भटक जाएँगे...

हम तो कुछ देर हँस भी लेते हैं दिल हमेशा उदास रहता है...

मेरी आँख के तारे अब न देख पाओगे रात के मुसाफ़िर थे खो गए उजालों में...

हम ने तो बाज़ार में दुनिया बेची और ख़रीदी है हम को क्या मालूम किसी को कैसे चाहा जाता है...

न उदास हो न मलाल कर किसी बात का न ख़याल कर कई साल ब'अद मिले हैं हम तेरे नाम आज की शाम है...

वो बड़ा रहीम ओ करीम है मुझे ये सिफ़त भी अता करे तुझे भूलने की दुआ करूँ तो मिरी दुआ में असर न हो...

फिर से ख़ुदा बनाएगा कोई नया जहाँ दुनिया को यूँ मिटाएगी इक्कीसवीं सदी...

न जाने कब तिरे दिल पर नई सी दस्तक हो मकान ख़ाली हुआ है तो कोई आएगा...

न जी भर के देखा न कुछ बात की बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की...

मैं हर हाल में मुस्कुराता रहूँगा तुम्हारी मोहब्बत अगर साथ होगी...

मिरी ज़िंदगी भी मिरी नहीं ये हज़ार ख़ानों में बट गई मुझे एक मुट्ठी ज़मीन दे ये ज़मीन कितनी सिमट गई तिरी याद आए तो चुप रहूँ ज़रा चुप रहूँ तो ग़ज़ल कहूँ ये अजीब आग की बेल थी मिरे तन-बदन से लिपट गई...

हाथ में चाँद जहाँ आया मुक़द्दर चमका सब बदल जाएगा क़िस्मत का लिखा जाम उठा...

उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए...

उन्हीं रास्तों ने जिन पर कभी तुम थे साथ मेरे मुझे रोक रोक पूछा तिरा हम-सफ़र कहाँ है...