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महक रही है ज़मीं चाँदनी के फूलों से ख़ुदा किसी की मोहब्बत पे मुस्कुराया है...

जब रात की तन्हाई दिल बन के धड़कती है यादों के दरीचों में चिलमन सी सरकती है लोबान में चिंगारी जैसे कोई रख जाए यूँ याद तिरी शब भर सीने में सुलगती है...

इतनी मिलती है मिरी ग़ज़लों से सूरत तेरी लोग तुझ को मिरा महबूब समझते होंगे...

हज़ारों शेर मेरे सो गए काग़ज़ की क़ब्रों में अजब माँ हूँ कोई बच्चा मिरा ज़िंदा नहीं रहता...

ये ज़र्द पत्तों की बारिश मिरा ज़वाल नहीं मिरे बदन पे किसी दूसरे की शाल नहीं उदास हो गई एक फ़ाख़्ता चहकती हुई किसी ने क़त्ल किया है ये इंतिक़ाल नहीं...

वो सूरत गर्द-ए-ग़म में छुप गई हो बहुत मुमकिन ये वो ही आदमी हो मैं ठहरा आबशार-ए-शहर-ए-पुर-फ़न घने जंगल की तुम बहती नदी हो...

मैं कब तन्हा हुआ था याद होगा तुम्हारा फ़ैसला था याद होगा बहुत से उजले उजले फूल ले कर कोई तुम से मिला था याद होगा...

पत्थर के जिगर वालो ग़म में वो रवानी है ख़ुद राह बना लेगा बहता हुआ पानी है इक ज़ेहन-ए-परेशाँ में ख़्वाब-ए-ग़ज़लिस्ताँ है पत्थर की हिफ़ाज़त में शीशे की जवानी है...

मोहब्बत एक ख़ुशबू है हमेशा साथ चलती है कोई इंसान तन्हाई में भी तन्हा नहीं रहता...

मान मौसम का कहा छाई घटा जाम उठा आग से आग बुझा फूल खिला जाम उठा पी मिरे यार तुझे अपनी क़सम देता हूँ भूल जा शिकवा गिला हाथ मिला जाम उठा...

दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे जब कभी हम दोस्त हो जाएँ तो शर्मिंदा न हों...

लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में तुम तरस नहीं खाते बस्तियाँ जलाने में और जाम टूटेंगे इस शराब-ख़ाने में मौसमों के आने में मौसमों के जाने में...

ख़ुशबू की तरह आया वो तेज़ हवाओं में माँगा था जिसे हम ने दिन रात दुआओं में तुम छत पे नहीं आए मैं घर से नहीं निकला ये चाँद बहुत भटका सावन की घटाओं में...

अच्छा तुम्हारे शहर का दस्तूर हो गया जिस को गले लगा लिया वो दूर हो गया...

कमरे वीराँ आँगन ख़ाली फिर ये कैसी आवाज़ें शायद मेरे दिल की धड़कन चुनी है इन दीवारों में...

कौन आया रास्ते आईना-ख़ाने हो गए रात रौशन हो गई दिन भी सुहाने हो गए क्यूँ हवेली के उजड़ने का मुझे अफ़्सोस हो सैकड़ों बे-घर परिंदों के ठिकाने हो गए...

वो अपने घर चला गया अफ़सोस मत करो इतना ही उस का साथ था अफ़सोस मत करो इंसान अपने आप में मजबूर है बहुत कोई नहीं है बेवफ़ा अफ़सोस मत करो...

फ़लक से चाँद सितारों से जाम लेना है मुझे सहर से नई एक शाम लेना है किसे ख़बर कि फ़रिश्ते ग़ज़ल समझते हैं ख़ुदा के सामने काफ़िर का नाम लेना है...

मैं जब सो जाऊँ इन आँखों पे अपने होंट रख देना यक़ीं आ जाएगा पलकों तले भी दिल धड़कता है...

घर से निकले अगर हम बहक जाएँगे वो गुलाबी कटोरे छलक जाएँगे हम ने अल्फ़ाज़ को आइना कर दिया छपने वाले ग़ज़ल में चमक जाएँगे...

चमक रही है परों में उड़ान की ख़ुशबू बुला रही है बहुत आसमान की ख़ुशबू भटक रही है पुरानी दुलाइयाँ ओढ़े हवेलियों में मिरे ख़ानदान की ख़ुशबू...

इक शाम के साए तले बैठे रहे वो देर तक आँखों से की बातें बहुत मुँह से कहा कुछ भी नहीं...

कभी तो शाम ढले अपने घर गए होते किसी की आँख में रह कर सँवर गए होते...

घरों पे नाम थे नामों के साथ ओहदे थे बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला...

सर से पा तक वो गुलाबों का शजर लगता है बा-वज़ू हो के भी छूते हुए डर लगता है मैं तिरे साथ सितारों से गुज़र सकता हूँ कितना आसान मोहब्बत का सफ़र लगता है...

कभी तो शाम ढले अपने घर गए होते किसी की आँख में रह कर सँवर गए होते सिंगार-दान में रहते हो आइने की तरह किसी के हाथ से गिर कर बिखर गए होते...

दिल में इक तस्वीर छुपी थी आन बसी है आँखों में शायद हम ने आज ग़ज़ल सी बात लिखी है आँखों में जैसे इक हरीजन लड़की मंदिर के दरवाज़े पर शाम दियों की थाल सजाए झाँक रही है आँखों में...

ये परिंदे भी खेतों के मज़दूर हैं लौट के अपने घर शाम तक जाएँगे...

न तुम होश में हो न हम होश में हैं चलो मय-कदे में वहीं बात होगी...

नए दौर के नए ख़्वाब हैं नए मौसमों के गुलाब हैं ये मोहब्बतों के चराग़ हैं इन्हें नफ़रतों की हवा न दे...

दुआ करो कि ये पौदा सदा हरा ही लगे उदासियों में भी चेहरा खिला खिला ही लगे...

चाँद सा मिस्रा अकेला है मिरे काग़ज़ पर छत पे आ जाओ मिरा शेर मुकम्मल कर दो...

चाँद सा मिस्रा अकेला है मिरे आग़ाज़ पर छत पे आ जाओ मिरा शेर मुकम्मल कर दो...

बिछी थीं हर तरफ़ आँखें ही आँखें कोई आँसू गिरा था याद होगा...

बे-वक़्त अगर जाऊँगा सब चौंक पड़ेंगे इक उम्र हुई दिन में कभी घर नहीं देखा...

बहुत अजीब है ये क़ुर्बतों की दूरी भी वो मेरे साथ रहा और मुझे कभी न मिला...

बहुत दिनों से है दिल अपना ख़ाली ख़ाली सा ख़ुशी नहीं तो उदासी से भर गए होते...

बड़े लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना जहाँ दरिया समुंदर से मिला दरिया नहीं रहता...

बड़े लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना जहाँ दरिया समुंदर से मिला दरिया नहीं रहता...

अहबाब भी ग़ैरों की अदा सीख गए हैं आते हैं मगर दिल को दुखाने नहीं आते...