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कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तिरा कुछ ने कहा ये चाँद है कुछ ने कहा चेहरा तिरा हम भी वहीं मौजूद थे हम से भी सब पूछा किए हम हँस दिए हम चुप रहे मंज़ूर था पर्दा तिरा...

हम जंगल के जोगी हम को एक जगह आराम कहाँ आज यहाँ कल और नगर में सुब्ह कहाँ और शाम कहाँ हम से भी पीत की बात करो कुछ हम से भी लोगो प्यार करो तुम तो परेशाँ हो भी सकोगे हम को यहाँ पे दवाम कहाँ...

कल हम ने सपना देखा है जो अपना हो नहीं सकता है उस शख़्स को अपना देखा है वो शख़्स कि जिस की ख़ातिर हम...

सब माया है, सब ढलती फिरती छाया है इस इश्क़ में हम ने जो खोया जो पाया है जो तुम ने कहा है, फ़ैज़ ने जो फ़रमाया है सब माया है...