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भोर का उठना है उपकारी। जीवन-तरु जिससे पाता है हरियाली अति प्यारी। पा अनुपम पानिप तन बनता है बल-संचय-कारी। पुलकित, कुसुमित, सुरभित, हो जाती है जन-उर-क्यारी।...

जी न बदला न रंगतें बदलीं। चाल बदली नहीं दिखाती है। मौत को क्यों बुला रहे हैं हम। क्या बला पर बला न आती है।1।...

जी लगा पोथी अपनी पढ़ो। केवल पढ़ो न पोथी ही को, मेरे प्यारे कढ़ो। कभी कुपथ में पाँव न डालो, सुपथ ओर ही बढ़ो। भावों की ऊँची चोटी पर बड़े चाव से चढ़ो।...

है पुनीत कल्लोल सकल कलिकलुष-विदारी। है करती शुचि लोल लहर सुरलोक-बिहारी। भूरि भाव मय अभय भँवर है भवभय खोती। अमल धावल जलराशि है समल मानस धाोती।...

वैदिकता-विधि-पूत-वेदिका बन्दनीय-बलि। वेद-विकच-अरविन्द मंत्र-मकरन्द मत-अलि। आर्य-भाव कमनीय-रत्न के अनुपम-आकर। विविध-अंध-विश्वास तिमिर के विदित-विभाकर।...

जो मिठाई में सुधा से है अधिक। खा सके वह रस भरा मेवा नहीं। तो भला जग में जिये तो क्या जिये। की गयी जो जाति की सेवा नहीं।1।...

मति मान-सरोवर मंजुल मराल। संभावित समुदाय सभासद वृन्द। भाव कमनीय कंज परम प्रेमिक। नव नव रस लुब्धा भावुक मिलिन्द।1।...

तिमिर तिरोहित हुए तिमिर-हर है दिखलाता। गत विभावरी हुए विभा बासर है पाता। टले मलिनता सकल दिशा है अमलिन होती। भगे तमीचर, नीरवता तमचुर-धवनि खोती।...

खोजे खोजी को मिला क्या हिन्दू क्या जैन। पत्ता पत्ता क्यों हमें पता बताता है न।1। रँगे रंग में जब रहे सकें रंग क्यों भूल। देख उसी की ही फबन फूल रहे हैं फूल।2।...

जातियाँ जिससे बनीं, ऊँची हुई, फूली फलीं। अंक में जिसके बड़े ही गौरवों से हैं पलीं। रत्न हो करके रहीं जो रंग में उसके ढलीं। राज भूलीं, पर न सेवा से कभी जिसकी टलीं।...

गयीं चोटें लगाई क्या कलेजा चोट खाता है। कलेजा कढ़ रहा है क्या कलेजा मुँह को आता है।1। हुए अंधेर कितने आज भी अंधेर हैं होते। अँधेरा आँख पर छाया है अंधापन न जाता है।2।...

एक कुसुम कमनीय म्लान हो सूख विखर कर। पड़ा हुआ था धूल भरा अवनीतल ऊपर। उसे देख कर एक सुजन का जी भर आया। वह कातरता सहित वचन यह मुख पर लाया।1।...

वही हैं मिटा देते कितने कसाले। वही हैं बड़ों की बड़ाई सम्हाले। वही हैं बड़े औ भले नाम वाले। वही हैं अँधेरे घरों के उँजाले।...

देख कर बाधा विविध, बहु विघ्न घबराते नहीं रह भरोसे भाग्य के दुख भोग पछताते नहीं काम कितना ही कठिन हो किन्तु उकताते नहीं भीड़ में चंचल बने जो वीर दिखलाते नहीं ...

विकच कमल कमनीय कलाधर। मंद मंद आन्दोलित मलय पवन। तरल तरंग माला संकुल जलधि। परम आनन्दमय नन्दन कानन।1।...

देखो लड़को, बंदर आया, एक मदारी उसको लाया। उसका है कुछ ढंग निराला, कानों में पहने है बाला। फटे-पुराने रंग-बिरंगे कपड़े हैं उसके बेढंगे। मुँह डरावना आँखें छोटी, लंबी दुम थोड़ी-सी मोटी।...

देश को जिस ने जगाया जगे सोने न दिया। आग घर घर में बुरी फूट को बोने न दिया।1। है वही बीर पिया दूध उसी ने माँ का। जाति को जिसने जिगर थाम के रोने न दिया।2।...

देख पड़ी अनुराग-राग-रंजित रवितन में। छबि पाई भर विपुल-विभा नीलाभ-गगन में। बर-आभा कर दान ककुभ को दुति से दमकी। अन्तरिक्ष को चारु ज्योतिमयता दे चमकी।...

बड़े ही ढँगीले बड़े ही निराले। अछूती सभी रंगतों बीच ढाले। दिलों के घरों के कुलों के उँजाले। सुनो ऐ सुजन पूत करतूत वाले।...

उमंगों भरा दिल किसी का न टूटे। पलट जायँ पासे मगर जुग न फूटे। कभी संग निज संगियों का न छूटे। हमारा चलन घर हमारा न लूटे।...

है भरी कूट कूट कोर कसर। माँ बहन से करें न क्यों कुट्टी। लोग सहयोग कर सकें कैसे। है असहयोग से नहीं छुट्टी।1।...

सारी बाधाएँ हरें राधा नयानानंद। वृन्दारक बन्दित चरण श्री बृन्दावन चंद।1। चाव भरे चितवत खरे किये सरस दृग-कोर। जय दुलहिन श्री राधिका दूलह नन्द-किशोर।2।...

जो न बने वे विमल लसे विधु-मौलि मौलि पर। जो न बने रमणीय सज, रमा-रमण कलेवर। बर बृन्दारक बृन्द पूज जो बने न बन्दित। जो न सके अभिनन्दनीय को कर अभिनन्दित।...

माली की डाली के बिकसे कुसुम बिलोक एक बाला। बोली ऐ मति भोले कुसुमो खल से तुम्हें पड़ा पाला। विकसित होते ही वह नित आ तुम्हें तोड़ ले जाता है। उदर-परायणता वश पामर तनिक दया नहिं लाता है।1।...

जो न परम कोमलता उसकी रही विमलता में ढाली। जो माई के लाल कहाने की न लसी उस पर लाली। कातर जन की कातरता हर होती है जो शान्ति महा। उसकी मंजु व्यंजना द्वारा जो वह व्यंजित नहीं रहा।...

मानव ममता है मतवाली । अपने ही कर में रखती है सब तालों की ताली । अपनी ही रंगत में रंगकर रखती है मुँह लाली । ऐसे ढंग कहा वह जैसे ढंगों में हैं ढाली ।...

पेड़ पर रात की अँधेरी में। जुगनुओं में पड़ाव हैं डाले। या दिवाली मना चुड़ैलों ने। आज हैं सैकड़ों दिये बाले।1।...

बाढ़ में जो बहे न बढ़ बोले। किसलिए तो बहुत बढ़े आँसू। जो कलेजा न काढ़ पाया तो। किसलिए आँख से कढ़े आँसू।1।...

प्रकृति-चित्र-पट असित-भूत था छिति पर छाया था तमतोम। भाद्र-मास की अमा-निशा थी जलदजाल पूरित था व्योम।...

कुसुम वे उस में बिकसे रहें। बिकसिता जिस से सु बिभूति हो। बस सदा जिन के बर-बास से। बन सके अनुभूति सुबासिता।1।...

कलित-कूल को धवनित बना कल-कल-धवनि द्वारा। विलस रही है विपुल-विमल यह सुरसरि-धारा। अथवा सितता-सदन सतोगुण-गरिमा सारी। ला सुरपुर से सरि-स्वरूप में गयी पसारी।...

चूँ-चूँ चूँ-चूँ चूहा बोले, म्याऊँ म्याऊँ बिल्ली। ती-ती, ती-ती कीरा बोले, झीं-झीं झीं-झीं झिल्ली।...

उठो लाल, अब आँखें खोलो, पानी लाई हूँ, मुँह धो लो। बीती रात, कमल-दल फूले, उनके ऊपर भौंरे झूले।...

कर सकेंगे क्या वे नादान। बिन सयानपन होते जो हैं बनते बड़े सयान। कौआ कान ले गया सुन जो नहिं टटोलते कान। वे क्यों सोचें तोड़ तरैया लाना है आसान।1।...

जिसे सूझ कर भी नहीं सूझ पाता। नहीं बात बिगड़ी हुई जो बनाता। फिसल कर सँभलना जिसे है न आता। नहीं पाँव उखड़ा हुआ जो जमाता।...

सुरसरि सी सरि है कहाँ मेरु सुमेर समान। जन्मभूमि सी भू नहीं भूमण्डल में आन॥ प्रतिदिन पूजें भाव से चढ़ा भक्ति के फूल। नहीं जन्म भर हम सके जन्मभूमि को भूल॥...

राम चरित सरसिज मधुप पावन चरित नितान्त। जय तुलसी कवि कुल तिलक कविता कामिनि कान्त।1। सुरसरि धारा सी सरस पूत परम रमणीय। है तुलसी की कल्पना कल्पलता कमनीय।2।...

क्यों आँख खोल हम लोग नहीं पाते हैं। क्या रहे और अब क्या बनते जाते हैं। थे हमीं उँजाला जग में करने वाले। थे हमीं रगों में बिजली भरने वाले।...

चंदा मामा दौड़े आओ, दूध कटोरा भर कर लाओ। उसे प्यार से मुझे पिलाओ, मुझ पर छिड़क चाँदनी जाओ।...

बस में जिससे हो जाते हैं प्राणी सारे। जन जिससे बन जाते हैं आँखों के तारे। पत्थर को पिघलाकर मोम बनानेवाली मुख खोलो तो मीठी बोली बोलो प्यारे॥...