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किस लिए तो रहे महँकते वे। कुछ घड़ी में गई महँक जो छिन। क्या खिले जो सदा खिले न रहे। क्या हँसे फूल जो हँसे दो दिन।1।...

फूल तुम हो सुहावने सरस। नहीं प्यारे लगते हो किसे। लुभा लेते हो किसको नहीं। हो न किस की आँखों में बसे।1।...

चाँद के हँसने में किसकी। कला है बहुत लुभा पाती। चैत की खिली चाँदनी में। चमक किसकी है दिखलाती।1।...

किसलिए दिया सरग को छोड़। हो गयी कैसे ऐसी भूल। कह रहे हो क्या मुँह को खोल। क्या बता दोगे हम को फूल।1।...

बाल को साँप समझते हैं। तनी भौंहों को तलवारें। तीर कहते हैं आँखों को। भले ही वे उनको मारें।1।...

कुछ उरों में एक उपजी है लता। अति अनूठी लहलही कोमल बड़ी। देख कर उसको हरा जी हो गया। वह बताई है गयी जीवन-जड़ी।1।...

बहँक कर चाल उलटी चल कहो तो काम क्या होगा। बड़ों का मुँह चिढ़ा करके बता दो नाम क्या होगा।1। बही जी में नहीं जो बेकसों के प्यार की धारा। बता दो तो बदन चिकना व गोरा चाम क्या होगा।2।...

रही वह प्यारी रंगत नहीं। जहाँ रस था अब रज है वहाँ। किसलिए भौंरे आवें पास। बास अब फूलों में है कहाँ।1।...

टटोले गये सैकड़ों दिल। बहुत हम ने देखा भाला। प्यार सच्चा पाया किस में। याँ सभी है मतलब वाला।1।...

आप रहे कोरा शरीर के बसन रँगावे। घर तज कर के घरबारी से भी बढ़ जावे। इस प्रकार का नहीं चाहिए हम को साधू। मन तो मूँड़ न सके मूँड़ को दौड़ मुड़ावे।1।...

बिना छेदे बेधो बाँधो। किसी ने कब गजरे पहने। नहीं गोरेपन के भूखे। क्यों बनें वे तन के गहने।1।...

बात अपनी किसे बताएँगे। हाल घर का किसे सुनाएँगे।1। जो सके सुन न आप दुख मेरा। क्यों कलेजा निकाल पाएँगे।2।...

बरस पड़ते उन को देखा। पड़ा था रस जिन के बाँटे। खिले जो मिले गुलाबों से। खटकते थे उन के काँटे।1।...

फूल के पास जायँगे कैसे। देख काँटे उठे डरेंगे जो। मिल सकेगा उन्हें न रस कैसे। भौंर सा भाँवरें भरेंगे जो।1।...

सुनो ठहरो जाते हो कहाँ। राह अटपट है काँटों भरी। रात आई अँधियारा हुआ। सामने है पहाड़ की दरी।1।...

रंग रह सका रंग बदले। बन गयी बात, बात बिगड़े। रहा पानी पानी खो कर। मिटे सारे झगड़े, झगड़े।1।...

रात मुख उजला क्यों होता। जो न तारे गोदी भरते। दिशा क्यों हँसती दिखलाती। चंद घर अगर नहीं करते।1।...

बहुत ही हम घबराते हैं। कलप कर के रह जाते हैं। कलेजा जब दुख जाता है। आँख में आँसू आते हैं।1।...

मैं ऊब ऊब उठती हूँ। क्या ऊब नहीं तुम पाते। आ कर के अपना मुखड़ा क्यों मुझे नहीं दिखलाते।1।...

टल सकी किस की मुसीबत की घड़ी। है बला किस के नहीं सिर पर खड़ी।1। आदमी जिससे कि जीता ही रहे। मिल सकी कोई नहीं ऐसी जड़ी।2।...

अति-पुनीत-अलौकिकता भरी। विबुध-वृन्द अतीव-विनोदिनी। मधुरिमा गरिमा महिमा मयी। कथित है महिमामय-माधुरी।1।...

भरी नटखटी रग रग में है। एक एक रोआँ है ऐंठा। उस के जी में सब पाजीपन। पाँव तोड़ कर के है बैठा।1।...

न उसको मोती की है चाह। न उसको है कपूर से प्यार। नहीं जी में है यह अरमान। तू बरस दे उस पर जल धार।1।...

मंगल मय है कौन किसे कहते हैं मंगल। फलदायक है कौन सफलता है किस का फल। मंगल कितने लोग अमंगल में हैं पाते। विविधा विफलता सहित सफलता के हैं नाते।...

किसलिए आई दुनिया में। बला जो टली नहीं टाले। दुखों से गला जो न छूटा। सुखों के पडे रहे लाले।1।...

हैं डराते न राजसी कपड़े। क्यों रहे वह न चीथड़े पहने। धूल से तन भरा भले ही हो। हैं लुभाते न फूल के गहने।1।...

देख कर के मुझको रोती। रो सके तो तू भी रो दे। जलाता है क्यों तू इतना। जलद जल देता है तो दे।1।...

बे तुके किस तरह कहाएँगे। बे तुकी जो नहीं सुनाएँगे।1। तो कहे जाएँगे जले तन क्यों। आग घर में न जो लगाएँगे।2।...

रंग बू फूल नहीं रखता। धूल में जब मिल जाता है। सूख जाने पर पत्ते खो। फल नहीं पौधा लाता है।1।...

बच सकेगा नहीं भँवर से रस। आ महक को हवा उड़ा लेगी। पास पहुँच बनी ठनी तितली। पंखड़ी को मसल दगा देगी।1।...

कलेजे मैंने देखे हैं। टटोले जी मैंने कितने। काम सबने रस से रक्खा। मिले मिलने वाले जितने।1।...

है समझ आज घर बसा न रही। राह पर है हमें लगा न रही।1। जागते क्यों नहीं जगाने से। जाति क्या है हमें जगा न रही।2।...

रंग कब बिगड़ सका उनका रंग लाते दिखलाते हैं । मस्त हैं सदा बने रहते । उन्हें मुसुकाते पाते हैं ।।१।।...

कहाँ गया तू मेरा लाल। आह! काढ़ ले गया कलेजा आकर के क्यों काल। पुलकित उर में रहा बसेरा। था ललकित लोचन में देरा।...

बने रहते हो मतवाले। कौन से मद से माते हो। रात भर जाग जाग कर के। कौन सा मंत्र जगाते हो।1।...

जो आँख हमारी ठीक ठीक खुल जावे। तो किसे ताब है आँख हमें दिखलावे। है पास हमारे उन फूलों का दोना। है महँक रहा जिनसे जग का हर कोना।...

दिल मचलता ही रहता है । सदा बेचैनी रहती है । लाग में आ आकर चाहत । न जाने क्या क्या कहती है ।।१।।...

उमगती हँसती आती हूँ। अनूठा गजरा लाती हूँ। भरा आँखों में हो आँसू मगर मोती बरसाती हूँ।1। बाल हों बुरी तरह फैले।...

रो रहा है बहा बहा आँसू। या कि है वह पिरो रहा मोती। हित नहीं सूझता उसे अपना। प्यार को आँख क्या नहीं होती?।1।...

वायु के मिस भर भरकर आह । ओस मिस बहा नयन जलधार । इधर रोती रहती है रात । छिन गये मणि मुक्ता का हार ।।१।।...