Page 1 of 5

बनों में जिस से रही बहार। बाग का जो था सुन्दर साज। मसल क्यों उस को देवे पाँव। सजे थे जिससे सर के ताज।1।...

काली-काली कू-कू करती जो है डाली-डाली फिरती! कुछ अपनी हीं धुन में ऐंठी छिपी हरे पत्तों में बैठी...

बुरे रंगों में जो रँग दें। न जी में उठें तरंगें वे। भरी बदबू से जो होवें। धूल में मिलें उमंगें वे।1।...

पीना नशा बुरा है पीये नशा न कोई। है आग इस बला ने लाखों घरों में बोई।1। उसका रहा न पानी। जिसने कि भंग छानी।...

क्यों नहीं बता दो प्यारे। सुख की घड़ियाँ आती हैं। क्यों तुम्हें तरसती आँखें। अब देख नहीं पाती हैं।1।...

कुम्हला गया हमारा फूल। अति सुन्दर युग नयन-बिमोहन जीवन सुख का मूल। विकसित बदन परम कोमल तन रंजित चित अनुकूल। अहह सका मन मधुप न उसकी अति अनुपम छबि भूल।1।...

फूल मैं लेने आई थी। किसी को देख लुभाई क्यों। हो गया क्या, कैसे कह दूँ। किसी ने आँख मिलाई क्यों।1।...

कम नहीं है किसी कसाई से। जो गला और का रहे कसते। किस तरह जान बच सके उनसे। जो कि हैं साँप की तरह डँसते।1।...

कहें क्या बातें आँखों की । चाल चलती हैं मनमानी । सदा पानी में डूबी रह । नहीं रख सकती हैं पानी ।।१।।...

जैसा हमने खोया, न कोई खोवेगा ऐसा नहीं कोई कहीं गिरा होवेगा।। एक दिन थे हम भी बल विद्या बुद्धिवाले एक दिन थे हम भी धीर वीर गुनवाले...

रहा है दिल मला करे । न होगा आँसू आए । सब दिनों कौन रहा जीता । सभी तो मरते दिखलाए ।।१।।...

वेदों की है न वह महिमा धर्म ध्वंस होता। आचारों का निपतन हुआ लुप्त जातीयता है। विप्रो खोलो नयन अब है आर्यता भी विपन्ना। शीलों की है मलिन प्रभुता सभ्यता वंचिता है।1।...

आँखें खोलो भारत के रहने वालो। घर देखो भालो सँभलो और सँभालो। यह फूट डालती फूट रहेगी कब तक। यह छेड़ छाड़ औ छूट रहेगी कब तक।...

जब लगा तार तार ही टूटा। और झनकार फूट कर रोई। जब कि बोली न बोल की तूती। किसलिए बीन तब बजी कोई।1।...

हे दीनबंधु दया-निकेतन विहग-केतन श्रीपते। सब शोक-शमन त्रिताप-मोचन दुख-दमन जगतीपते। भव-भीति-भंजन दुरित-गंजन अवनि-जन-रंजन विभो। बहु-बार जन-हित-अवतरित ऐ अति-उदार-चरित प्रभो।1।...

ज्यों निकल कर बादलों की गोद से थी अभी एक बूँद कुछ आगे बढ़ी सोचने फिर-फिर यही जी में लगी, आह! क्यों घर छोड़कर मैं यों कढ़ी?...

लगी है अगर आँख मेरी। किसलिए आँख नहीं लगती। किस तरह आते हैं सपने। रात भर जब मैं हूँ जगती।1।...

प्रकृति देवि कल मुक्तमाल मणि गगनांगण का रत्न प्रदीप। भव्य बिन्दु दिग्वधू भाल का मंजुलता अवनी अवनीप।...

ढाल पसीना जिसे बड़े प्यारों से पाला। जिसके तन में सींच सींच जीवन-रस डाला। सुअंकुरित अवलोक जिसे फूला न समाया। पा करके पल्लवित जिसे पुलकित हो आया।...

उँगलियों से छिड़ते जिस काल। सुधा की बूँदें पाते कान। धुन सुने सिर धुनते थे लोग। तान में पड़ जाती थी जान।1।...

चाल चल चल कर के कितनी। मैं नहीं माल मूसता हूँ। घिनाये क्यों मुझसे कोई। मैं नहीं लहू चूसता हूँ।1।...

श्याम रंग में तो न रँगे हो जो अन्तर रखते हो श्याम। तो जलधार हो नहीं विरह-दव में जो जल जल जीवें बाम। जीवनप्रद हो तभी करो जो तुम चातक को जीवन दान। कैसे सरस कहें हम तुमको ऊसर हुआ न जो रसवान।1।...

रंग लाते नये नये क्यों हैं। किसलिए हैं उमंग में आते। जो दिलों में पड़े हुए छाले। छातियाँ छेद ही नहीं पाते।1।...

जला सब तेल दीया बुझ गया है अब जलेगा क्या। बना जब पेड़ उकठा काठ तब फूले फलेगा क्या।1। रहा जिसमें न दम जिसके लहू पर पड़ गया पाला। उसे पिटना पछड़ना ठोकरें खाना खलेगा क्या।2।...

बीन में तेरी भरी झनकार है। बज रहा मेरी रगों का तार है।1। यों भवें क्यों हैं नचाई जा रहीं। आज किस पर चल रही तलवार है।2।...

आज क्यों भोर है बहुत भाता। क्यों खिली आसमान की लाली। किस लिए है निकल रहा सूरज। साथ रोली भरी लिये थाली।1।...

कमाती रहती है पैसे। दूर की कौड़ी लाती है। बात कह लाख टके की भी। चाम के दाम चलाती है।1।...

धूल सिर पर उड़ा उड़ा कर के। है उसे वायु खोजती फिरती। है कभी साँस ले रही ठंढी। है कभी आह ऊब कर भरती।1।...

बन सकें, सब दिन उतना ही। दिखाते हैं सब को जितना। सभी जिससे नीचा देखे। न माथा ऊँचा हो इतना।1।...

खुले न खोले नयन, कमल फूले, खग बोले; आकुल अलि-कुल उड़े, लता-तरु-पल्लव डोले। रुचिर रंग में रँगी उमगती ऊषा आई; हँसी दिग्वधू, लसी गगन में ललित लुनाई।...

चितवन क्या तो भोली भाली। पड़ा कलेजे में जो छाला। आँखों से तो क्या रस बरसा। पीना पड़ा अगर विष प्याला।1।...

प्यास से सूख है रहा तालू। दिल किसी का न इस तरह छीलो। सामने है भरा हुआ पानी। पर कहाँ यह कहा कि तुम पी लो।1।...

गणपति गौरी-पति गिरा गोपति गुरु गोविन्द। गुण गावो वन्दन करो पावन पद अरविन्द।1। देव भाव मन में भरे दल अदेव अहमेव। गिरि गुरुता से हैं अधिक गौरव में गुरुदेव।2।...

कलेजा मेरा जलता है। याद में किसकी रोता हूँ। अनूठे मोती के दाने। किसलिए आज पिरोता हूँ।1।...

घिरा अँधियारा होवे दूर। जाय बन उजली काली रात। चाँद सा मुखड़ा जिसका देख। जगमगाये तारों की पाँत।1।...

जाति ममता मोल जो समझें नहीं। तो मिलों से हम करें मैला न मन। देश-हित का रंग न जो गाढ़ा चढ़ा। तो न डालें गाढ़ में गाढ़ा पहन।1।...

उमंगें पीसे देती हैं। चोट पहुँचाती हैं चाहें। नहीं मन सुनता है मेरी। भरी काँटों से हैं राहें।1।...

फूल प्यारे हमने तोड़े। या फफोले दिल के फोड़े। या कि फूटे आईने के। जमा कर हैं टुकड़े जोड़े।1।...

वर-विवेक कर दान सकल-अविवेक निवारे। दूर करे अविनार सुचारु विचार प्रचारे। सहज-सुतति को बितर कुमति-कालिमा नसावे। करे कुरुचि को विफल सुरुचि को सफल बनावे।...

है जिन्हें तोड़ना भले ही वे। तोड़ लें आसमान के तारे। ये फबीले इधर उधर फैले। फूल ही हैं हमें बहुत प्यारे।1।...