मुझे चाहिए कुछ बोल
मुझे चाहिए कुछ बोल जिनका एक गीत बन सके छीन लो मुझसे ये भीड़ की टें टें जला दो मुझे मेरी कविता की धूनी पर मेरी खोपड़ी पर बेशक खनकाएं शासन का काला डंडा लेकिन मुझे दे दो कुछ बोल जिनका गीत बन सके मुझे नहीं चाहिए अमीन सयानी के डायलॉग संभाले आनंद बक्षी, आप जाने लक्ष्मीकांत मुझे क्या करना है इंदिरा का भाषण मुझे तो चाहिए कुछ बोल जिनका गीत बन सके मेरे मुंह में ठूस दे यमले जट्टे की तूम्बी मेरे माथे पे घसीट दे टैगोर का नेशनल एंथम मेरे सीन पे चिपका दे गुलशन नंदा के नॉवेल मुझे क्यों पढ़ना है ज़फरनामा गर मुझे मिल जाए कुछ बोल जिनका एक गीत बन सके मेरी पीठ पर लाद दे वाजपेयी का बोझिल बदन मेरी गर्दन में डाल दे हेमंत बसु की लाश मेरी @#$% में दे दे लाला जगत नारायण का सिर चलो मैं माओ का नाम भी नहीं लेता लेकिन मुझे दे तो सही कुछ बोल जिनका एक गीत बन सके मुझे पेन में स्याही न भरने दे मैं अपनी 'लौह कथा' भी जला देता हूँ मैं चन्दन* से भी कट्टी कर लेता हूँ गर मुझे दे दे कुछ बोल जिनका एक गीत बन सके यह गीत मुझे उन गूंगो को देना है जिन्हें गीतों की कद्र है लेकिन जिनका आपके हिसाब से गाना नहीं बनता गर आपके पास नहीं है कोई बोल, कोई गीत मुझे बकने दे जो मैं बकता हूँ। (चन्दन* =प्रसिद्द पंजाबी कवि अमरजीत चन्दन)

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