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मंदिर गए मस्जिद गए पीरों फ़क़ीरों से मिले इक उस को पाने के लिए क्या क्या किया क्या क्या हुआ...
जो कुछ था देय, दिया तुमने, सब लेकर भी हम हाथ पसारे हुए खड़े हैं आशा में; लेकिन, छींटों के आगे जीभ नहीं खुलती, बेबसी बोलती है आँसू की भाषा में।...
गिरते जीवन को उठा दिया, तुमने कितना धन लुटा दिया! सूखी आशा की विषम फांस, खोलकर साफ की गांस-गांस,...
खिड़की बंद, किंवाड़े बंद, मेरे कोठे में कोठे की आत्मा बंद। बाहर दुनिया खुली-खुली,...
दूरवासी मीत मेरे! पहुँच क्या तुझ तक सकेंगे काँपते ये गीत मेरे? आज कारावास में उर तड़प उठा है पिघल कर बद्ध सब अरमान मेरे फूट निकले हैं उबल कर...
मैं दोसती दे जशन 'ते इह गीत जो अज्ज पड़्ह रेहां मैं दोसतां दी दोसती दी नज़र इस नूं कर रेहां...
मैं तैनूं प्यारदा सां प्यारदा हां मैं तैनूं अज्ज वी सतिकारदा हां मैं कल्ल्ह दा गीत तेरे सीस उत्तों वार्या सी...
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हम-सर-ए-ज़ुल्फ़ क़द-ए-हूर-ए-शिमाइल ठहरा लाम का ख़ूब अलिफ़ मद्द-ए-मुक़ाबिल ठहरा दीदा-ए-तर से जो दामन में गिरा दिल ठहरा बहते बहते ये सफ़ीना लब-ए-साहिल ठहरा...
गुज़र को है बहुत औक़ात थोड़ी कि है ये तूल क़िस्सा रात थोड़ी जो मय ज़ाहिद ने माँगी मस्त बोले बहुत या क़िबला-ए-हाजात थोड़ी...
हैं न ज़िंदों में न मुर्दों में कमर के आशिक़ न इधर के हैं इलाही न उधर के आशिक़ है वही आँख जो मुश्ताक़ तिरे दीद की हो कान वो हैं जो रहें तेरी ख़बर के आशिक़...
फ़िराक़-ए-यार ने बेचैन मुझ को रात भर रक्खा कभी तकिया इधर रक्खा कभी तकिया इधर रक्खा शिकस्त-ए-दिल का बाक़ी हम ने ग़ुर्बत में असर रखा लिखा अहल-ए-वतन को ख़त तो इक गोशा कतर रक्खा...
हम जो मस्त-ए-शराब होते हैं ज़र्रे से आफ़्ताब होते हैं है ख़राबात सोहबत-ए-वाइज़ लोग नाहक़ ख़राब होते हैं...
है ख़मोशी ज़ुल्म-ए-चर्ख़-ए-देव-पैकर का जवाब आदमी होता तो हम देते बराबर का जवाब जो बगूला दश्त-ए-ग़ुर्बत में उठा समझा ये मैं करती है तामीर दीवानी मिरे घर का जवाब...
उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूँ ढूँडने उस को चला हूँ जिसे पा भी न सकूँ डाल के ख़ाक मेरे ख़ून पे क़ातिल ने कहा कुछ ये मेहंदी नहीं मेरी कि छुपा भी न सकूँ...
गले में हाथ थे शब उस परी से राहें थीं सहर हुई तो वो आँखें न वो निगाहें थीं निकल के चेहरे पे मैदान साफ़ ख़त ने किया कभी ये शहर था ऐसा कि बंद राहें थीं...
चुप भी हो बक रहा है क्या वाइज़ मग़्ज़ रिंदों का खा गया वाइज़ तेरे कहने से रिंद जाएँगे ये तो है ख़ाना-ए-ख़ुदा वाइज़...