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सीखो नित नूतन ज्ञान,नई परिभाषाएं, जब आग लगे,गहरी समाधि में रम जाओ; या सिर के बल हो खडे परिक्रमा में घूमो। ढब और कौन हैं चतुर बुद्धि-बाजीगर के?...

ऐ सर्व-ए-ख़रामाँ तूँ न जा बाग़ में चलकर मत क़मरी-ओ-शम्‍शाद के सौदे में ख़लल कर कर चाक गरेबाँ कूँ गुलाँ सेहन-ए-चमन में आये हैं तिरे शौक़ में पर्दे सूँ निकल कर...

है राम के वजूद पे हिन्दोस्ताँ को नाज़ अहल-ए-नज़र समझते हैं उस को इमाम-ए-हिंद...

बर्शिकाल-ए-गिर्या-ए-आशिक़ है देखा चाहिए खिल गई मानिंद-ए-गुल सौ जा से दीवार-ए-चमन उल्फ़त-ए-गुल से ग़लत है दावा-ए-वारस्तगी सर्व है बा-वस्फ़-ए-आज़ादी गिरफ़्तार-ए-चमन...

हम ख़्वाबों के ब्योपारी थे पर इस में हुआ नुक़सान बड़ा कुछ बख़्त में ढेरों कालक थी कुछ अब के ग़ज़ब का काल पड़ा...

यह भी क्या बन्धन ही है? ध्येय मान जिस को अपनाया मुक्त-कंठ से जिस को गाया समझा जिस को जय-हुंकार, पराजय का क्रन्दन ही है? अरमानों के दीप्त सितारे जिस में प्रतिपल अनगिन बारे...

गाओ मधु प्रिय गान! सुनने को यह नभ नीरव है गाओ मधु प्रिय गान॥ नव तरु ने अपना हृदय आज...

उलटी गंग बहाइओ रे साधो, तब हर दरसन पाए । प्रेम दी पूनी हाथ में लीजो, गुझ्झ मरोड़ी पड़ने ना दीजो । गयान का तक्कला ध्यान का चरखा, उलटा फेर भुवाए । उलटे पाउं पर कुंभकरन जाए, तब लंका का भेद उपाए ।...

जो दिल को दीजे तो दिल में ख़ुश हो करे है किस किस तरह से हलचल अगर न दीजे तो वूहीं क्या क्या जतावे ख़फ़्गी इताब अकड़-बल जो इस बहाने से हाथ पकड़ें कि देख दिल की धड़क हमारे तो हाथ झप से छुड़ा ले कह कर मुझे नहीं है कुछ इस की अटकल...

देखो इंसाँ ख़ाक का पुतला बना क्या चीज़ है बोलता है इस में क्या वो बोलता क्या चीज़ है रू-ब-रू उस ज़ुल्फ़ के दाम-ए-बला क्या चीज़ है उस निगह के सामने तीर-ए-क़ज़ा क्या चीज़ है...

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मिली है दुख़्तर-ए-रज़ लड़-झगड़ के क़ाज़ी से जिहाद कर के जो औरत मिले हराम नहीं...

हम-सर-ए-ज़ुल्फ़ क़द-ए-हूर-ए-शिमाइल ठहरा लाम का ख़ूब अलिफ़ मद्द-ए-मुक़ाबिल ठहरा दीदा-ए-तर से जो दामन में गिरा दिल ठहरा बहते बहते ये सफ़ीना लब-ए-साहिल ठहरा...

गुज़र को है बहुत औक़ात थोड़ी कि है ये तूल क़िस्सा रात थोड़ी जो मय ज़ाहिद ने माँगी मस्त बोले बहुत या क़िबला-ए-हाजात थोड़ी...

हैं न ज़िंदों में न मुर्दों में कमर के आशिक़ न इधर के हैं इलाही न उधर के आशिक़ है वही आँख जो मुश्ताक़ तिरे दीद की हो कान वो हैं जो रहें तेरी ख़बर के आशिक़...

फ़िराक़-ए-यार ने बेचैन मुझ को रात भर रक्खा कभी तकिया इधर रक्खा कभी तकिया इधर रक्खा शिकस्त-ए-दिल का बाक़ी हम ने ग़ुर्बत में असर रखा लिखा अहल-ए-वतन को ख़त तो इक गोशा कतर रक्खा...

हम जो मस्त-ए-शराब होते हैं ज़र्रे से आफ़्ताब होते हैं है ख़राबात सोहबत-ए-वाइज़ लोग नाहक़ ख़राब होते हैं...

है ख़मोशी ज़ुल्म-ए-चर्ख़-ए-देव-पैकर का जवाब आदमी होता तो हम देते बराबर का जवाब जो बगूला दश्त-ए-ग़ुर्बत में उठा समझा ये मैं करती है तामीर दीवानी मिरे घर का जवाब...

उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूँ ढूँडने उस को चला हूँ जिसे पा भी न सकूँ डाल के ख़ाक मेरे ख़ून पे क़ातिल ने कहा कुछ ये मेहंदी नहीं मेरी कि छुपा भी न सकूँ...

गले में हाथ थे शब उस परी से राहें थीं सहर हुई तो वो आँखें न वो निगाहें थीं निकल के चेहरे पे मैदान साफ़ ख़त ने किया कभी ये शहर था ऐसा कि बंद राहें थीं...

चुप भी हो बक रहा है क्या वाइज़ मग़्ज़ रिंदों का खा गया वाइज़ तेरे कहने से रिंद जाएँगे ये तो है ख़ाना-ए-ख़ुदा वाइज़...