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जाग रहे हम वीर जवान, जियो जियो अय हिन्दुस्तान ! हम प्रभात की नई किरण हैं, हम दिन के आलोक नवल, हम नवीन भारत के सैनिक, धीर,वीर,गंभीर, अचल ।...

"ओ रे प्रेत -" कडककर बोले नरक के मालिक यमराज -"सच - सच बतला ! कैसे मरा तू ?...

आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा कश्ती के मुसाफ़िर ने समुंदर नहीं देखा...

वो सब्र दे कि न दे जिस ने बे-क़रार किया बस अब तुम्हीं पे चलो हम ने इंहिसार किया तुम्हारा ज़िक्र नहीं है तुम्हारा नाम नहीं किया नसीब का शिकवा हज़ार बार किया...

चीर के साल में दो बार ज़मीं का सीना दफ़्न हो जाता हूँ गुदगुदाते हैं जो सूरज के सुनहरे नाख़ुन फिर निकल आता हूँ...

एक समुद्र, एक हवा, एक नाव, एक आकांक्षा, एक याद : इन्हीं के लाये मैं यहाँ आया। यानी तुम्हारे।...

धूल सिर पर उड़ा उड़ा कर के। है उसे वायु खोजती फिरती। है कभी साँस ले रही ठंढी। है कभी आह ऊब कर भरती।1।...

तुम छेड़ो मेरी बीन कसी, रसराती। बंद किवाड़े कर-कर सोए सब नगरी के बासी, वक्त तुम्हारे आने का यह...

तिलिस्म ख़त्म चलो आह-ए-बे-असर का हुआ वो देखो जिस्म बरहना हर इक शजर का हुआ सुनाऊँ कैसे कि सूरज की ज़द में हैं सब लोग जो हाल रात को परछाइयों के घर का हुआ...

क्या हुए सूरत-निगाराँ ख़्वाब के ख़्वाब के सूरत-निगाराँ क्या हुए...

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मिली है दुख़्तर-ए-रज़ लड़-झगड़ के क़ाज़ी से जिहाद कर के जो औरत मिले हराम नहीं...

हम-सर-ए-ज़ुल्फ़ क़द-ए-हूर-ए-शिमाइल ठहरा लाम का ख़ूब अलिफ़ मद्द-ए-मुक़ाबिल ठहरा दीदा-ए-तर से जो दामन में गिरा दिल ठहरा बहते बहते ये सफ़ीना लब-ए-साहिल ठहरा...

गुज़र को है बहुत औक़ात थोड़ी कि है ये तूल क़िस्सा रात थोड़ी जो मय ज़ाहिद ने माँगी मस्त बोले बहुत या क़िबला-ए-हाजात थोड़ी...

हैं न ज़िंदों में न मुर्दों में कमर के आशिक़ न इधर के हैं इलाही न उधर के आशिक़ है वही आँख जो मुश्ताक़ तिरे दीद की हो कान वो हैं जो रहें तेरी ख़बर के आशिक़...

फ़िराक़-ए-यार ने बेचैन मुझ को रात भर रक्खा कभी तकिया इधर रक्खा कभी तकिया इधर रक्खा शिकस्त-ए-दिल का बाक़ी हम ने ग़ुर्बत में असर रखा लिखा अहल-ए-वतन को ख़त तो इक गोशा कतर रक्खा...

हम जो मस्त-ए-शराब होते हैं ज़र्रे से आफ़्ताब होते हैं है ख़राबात सोहबत-ए-वाइज़ लोग नाहक़ ख़राब होते हैं...

है ख़मोशी ज़ुल्म-ए-चर्ख़-ए-देव-पैकर का जवाब आदमी होता तो हम देते बराबर का जवाब जो बगूला दश्त-ए-ग़ुर्बत में उठा समझा ये मैं करती है तामीर दीवानी मिरे घर का जवाब...

उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूँ ढूँडने उस को चला हूँ जिसे पा भी न सकूँ डाल के ख़ाक मेरे ख़ून पे क़ातिल ने कहा कुछ ये मेहंदी नहीं मेरी कि छुपा भी न सकूँ...

गले में हाथ थे शब उस परी से राहें थीं सहर हुई तो वो आँखें न वो निगाहें थीं निकल के चेहरे पे मैदान साफ़ ख़त ने किया कभी ये शहर था ऐसा कि बंद राहें थीं...

चुप भी हो बक रहा है क्या वाइज़ मग़्ज़ रिंदों का खा गया वाइज़ तेरे कहने से रिंद जाएँगे ये तो है ख़ाना-ए-ख़ुदा वाइज़...