वो हज़ार दुश्मन-ए-जाँ सहीह मुझे फिर भी ग़ैर अज़ीज़ है
वो हज़ार दुश्मन-ए-जाँ सहीह मुझे फिर भी ग़ैर अज़ीज़ है जिसे ख़ाक-ए-पा तिरी छू गई वो बुरा भी हो तो बुरा नहीं

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